Monday, 28 September 2015

तलाश

मैं शब भर का जागा हूँ ,
के अब सो लेने दो
है कब से आँखों में कैद एक दरिया ,
थोड़ा रो लेने दो।

मौहब्बत ही तो थी
गुनाह तो नहीं था
जो होती हो अब क़यामत
तो हो लेने दो।

वो गया तो मुड़के देखा भी नहीं,
पर बोला के लौटुंग जरूर,
अब उन्ही लफ़्ज़ों के सहारे है ज़िन्दगी,
भारी तो है.…पर ,
अब ढो लेने दो।

ख्वाबों में मिलने का दिलासा था उसका,
और कई रातें गुज़ार दी हमने उस एक दिलासे की नज़र में,
अब ना नींद आती है पूरी, ना  ख़्वाब पुरे लगते है
नज्म उलझी , मिसरे  अटके, अश'आर  अधूरे लगते है ,
मैं अब थक चूका हूँ तलाश में तेरी,
मुझको खो लेने दो,
मैं शब भर का जागा हूँ ,
के अब सो लेने दो ।


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