बड़ी दुश्वारियां हैं,
दिल गूंगा हो चला है अब , ज़हन को लाखों बीमारियां हैं
बड़ी दुश्वारियां हैं।
सुलगता हुआ जहाँ है ये
सभी रूहें जल चुकी
महज पुतले बचे हैं मतलबी से
जैसे राख में दबी पड़ी अधमरी चिंगारियां हैं ,
बड़ी दुश्वारियां हैं।
किसी का साथ निभाता है क्या कोई अब भी ,
क्या अब भी होती है यारियां बिन समझौते की ,
या बस लाशें बची हैं इस इमारतों के जंगल में।
और अब सोचता हूँ के मैं भी लाश हो जाऊं
ज़िंदा पर ख़ामोश , बेजबान , मतलबी
ना जीने की तलब बची है अब , ना मरने की तैयारियां हैं,
बड़ी दुश्वारियां हैं।
बिस्तर में दुबकी अधमरी उम्मीद से पूछा मैंने ,
के चल साथ मेरे उस उफ़क के पार जहां नया भी होगा कोई ,
जहाँ ना होगी यारियां मतलब की ,
ना बाज़ारो में बिकता होगा ईमान लोगों का,
ना होती होगी नुमाइश किसी के जज़बातों की,
कुछ देर पड़ी रही वो भी लाश सी खामोश , फिर बोली सर झुका के
मेरी कई मजबूरियाँ हैं , मेरी भी कई लाचारियाँ हैं ,
बड़ी दुश्वारियां हैं।
Note :
उफ़क = horizon